Thursday, 14 March 2024

Tale of Two Homes

 















मुझे तो शायद ही कोई जानता हो, कॉलेज, स्कूल के दोस्त, ऑफिस, घर परिवार, बस, पर मैं जिनको जानता हूँ उनको शायद आप जानते होंगे, पहले मैं ये जानना चाहता हूँ कि आप पुरानी चीजों के बारे में क्या सोचते हैं, जैसे मुंबई की बात करें, बड़ी-बड़ी बिल्डिंग में रहने वाली जनरेशन की आमतौर पर पीछे वाली जनरेशन छोटे शहरों या गाँव में रहती थी, ऐस अब है कि बहुत से लोग इस जनरेशन के लोग गाँव और छोटे शहर से आए हैं।

और मेरा मानना है कि ये सवाल हमारी जनरेशन का नहीं है सिर्फ, ये पहले भी था, और शायद आगे भी रहेगा। मानो आप एक रेत का ढेर हो, और एक-एक कंकर उसमें से निकालकर कहीं और रख दिया जाए, ऐसा करते रहने पर किस कंकर को हटाने पर वह ढेर ढेर नहीं रहेगा?

अब इससे विचार को यहाँ थोड़ा विराम दे। जैसा कि आप जानते हैं, मेरी पारवारिक बड़ा समय खंडवा में गुजरा, और यह मशहूर है किशोर कुमार की जन्मभूमि होने के कारण भी, और हुआ यो कुछ दिन पहले बनारस जाने का अवसर मिला।

बनारस में देखने लायक बहुत सी चीजें हैं, पर एक जहाँ मेरा मन था हमेशा जाने का वह थी। वह बिस्मिल्लाह ख़ान का पुराना घर, वह घर जो टंग गलियों से होते हुए आता है, एक महान साक्ष्यता, भारत रत्न, और बेहद सरल इंसान, इतना इसलिए कह पा रहा हूँ क्योंकि अक्सर सुनता हूँ उनको यूट्यूब पर।

जैसा कि आपको बताया खंडवा से हूँ, और यह अभी ऐसा घर है लेजेंड्री सिंगर किशोर कुमार, बॉम्बे बाजार में उनका एक पुस्तहेन घर है, जर-जर हो रहा है, बाहर से जो लोग आते हैं, देखने की इच्छा जताते हैं।

जैसा मेरे लिए बिस्मिल्लाह ख़ान है जो मेरे लिए बनारस की पहचान है, उसी तरह वह घर किशोर कुमार का खंडवा का हस्ताक्षर है।

बहुत सालों पहले एक किताब पढ़ी थी चार्ल्स डिकेंस की "Tale of Two Cities" उसकी शुरुवात कुछ ऐसी थी।   

  "It was the best of times, it was the worst of times, it was the age of wisdom, it was the age of foolishness, it was the epoch of belief, it was the epoch of incredulity, it was the season of Light, it was the season of Darkness, it was the spring of hope, it was the winter of despair, we had everything before us, we had nothing before us, we were all going direct to Heaven, we were all going direct the other way—in short, the period was so far like the present period, that some of its noisiest authorities insisted on its being received, for good or for evil, in the superlative degree of comparison only."

ये कथन कहीं बीच की बात करता है, बेस्ट टू वर्स्ट के बीच कहीं, विस्डम और फूलिशनेस के बीच कहीं, बिलीफ और इंक्रेड्यूलिटी के बीच कहीं, लाइट और डार्कनेस के बीच कहीं।

ठीक उसी तरह जब हम बात कर रहे थे कि कितने कंकर रेत के ढेर से निकाले कि अब वो ढेर रहे। सच बताऊं मुझे नहीं पता, मैं अब अपने शहर का नहीं raha ,ना हो पाया महानगर का।

जो बचा है mujh main इस छोटे शहर में वो कितना ho गया महानगर का पता नहीं, और महानगर  कितना हो गया मुझे main पता नहीं,

बिस्मिल्लाह और किशोर कुमार, के अवशेष हमारे अवशेष है, कुछ पर्ते हटाओ तो साफ साफ दिखाई देंगे, और ये देखना बहुत ज़रूरी है!

Sochta hu tho Kabir ki ye line yaad aati hai !

कहाँ से आया कहाँ जाओगे
खबर करो अपने तन की
कोई सदगुरु मिले तो भेद बतावें
खुल जावे अंतर खिड़की।।