खंडवा छोड़े करीब 8 - 9 साल हो गये ,कुंडलेश्वर वार्ड शनि मंदिर के पीछे वाली गली मैं रहा करते थे ,पुश्तैनी घर था वही बचपन बीता ,गली मैं दूध वाले ,आरा मशीन ,आटा चकी ,किराने की दूकान , स्टील वर्क की दुकान ,
कुछ मंदिर,अखाड़ा आरएसएस शाखा और कुछ नेताओ के घर ,हिन्दू बहुल इलाका ईका-दुक्का मुस्लिम परिवार
मंदिर के दूसरे तरफ वाली गली मैं सुतार मोहल्ला था , सुतार मोहल्ला जहाँ फर्नीचर बनते थे , क्रिकेट के बेट के लिए पटिये की जुगाड़ मैं मोहल्ले के बचे उधर अक्सर जाया करते थे , वही कुछ दुकाने पीछे एक कसाई खाना था ,बकरे उलटे लटके रहते थे
वही कुत्ते के पिल्लै भी मिल जाते थे बच्चे उनके गले मैं रस्सी बांधके साथ लिए घूमते थे ये अधमरे पीले थे कागज़ से लेकर गोबर जो भी पीले उसे खा लेते थे
ये पीले कसाई खाने से पता नहीं क्या उठा उठा लाते थे , एक दिन किसी जानवर की चमड़ी लिए एक पिला घूम रहा था उसे बच्चो ने पकड़ना चाहा तो ट्रक इ नीचे घुस गया और निकला नहीं थोड़ी देर मैं बच्चे भी थक हार कर अपने आपने घर चले गये
दूसरे दिन एक घटना हुई जिससे अभी तक भूल नहीं पाया मैं छटवी या सातवी मैं होंगा उस वक़्त , st pius स्कूल मैं पढता था ,स्कूल घर से दूर था to छोटी बहन और मैं साथ मैं ऑटो से जाते थे , सुबह 7 बजे स्कूल पहुँच जाते थे पर उस दिन ठीक 10 बजे चाचा लेने आ गये
बहन और मैं हम दोनों बढे खुश हुए की स्कूल की छूटी ,चाचा से कारण पुछा तो बोले
शहर मैं कर्फ्यू लगा है ,तो कलेक्ट्रेट का आर्डर है की स्कूल बंद रहें
रस्ते मैं जब पुछा तो उन्होंने बताया की मंदिर के सामने कोई गाय का मांस फेक गया तो दंगा भड़कने से रोकने के लिए कर्फ्यू लगा है
उस वक़्त से सब बातों का मतलब भी नै जनता था मैं पर चाचा हमे
किसी दूसरे सुरक्षित रस्ते से घर आ गये , घर पहुँचते ही हम दोनों ने बैग उतरा और फ्रीज़ से मिर्ची निकालकर सीधा छत पर भागे जहाँ मिठू पाल रखा था उसके साथ दिन भर खेला करते ,छत से पूरा मोहल्ला दीखता था
शनि मंदिर से लेकर स्टील शॉप तक वो स्टील शॉप मोहल्ले के ईका- दुक्का मुस्लिम परिवारो मैं से किसी का था
कमर मिठु भी दिन भर छत पर बैठ कर पूरे मोहल्ले पर नज़र रखता था पर आज मोहल्ला सुनसान था कर्फ्यू के कारण कोई घर से निकल नहीं रहा था
और जिस मंदिर पर ये हुआ वो हमारे मोहल्ले का शनि मंदिर ही था
हम मिठू को मिर्ची खिला रहे थे बहन कह रही थी मेरी दी मिर्ची जल्दी खता है , तेरी मिर्ची धीरे खता है
जभी शनि मंदिर से 40 - 50 लोगो का झुंड दूसरे तरफ भागता दिखा सब के हाथो मैं कुछ न कुछ सामान था
लठ ,रोड़ फावड़े और पता नहीं क्या क्या सोर सुन कर मेरी बहन नीचे दादी के पास भाग गयी और मैं वही नीचे झुंककर बैठ गया
वो लोग स्टील की दुकान को घेर लिए ,दरवाज़ा बंद था किसी ने लात मरी गेट पर तो किसी ने फावड़े से मारना शुरू किया थोड़े ही देर मैं
दरवाज़ा टूट गया और वो सब लोग घर मैं घुस गये
घर मैं कोई मिला नै शायद उन्हें रहने वाले लोग पीछे के रस्ते से बहार निकल चुके थे
पर कुछ ही देर मैं कोई दुकान जहाँ पीछे घर भी था से लोग सामान लेकर बहार निकलने लगे कोई टीवी उठाकार कर बहार निकला तो
कोई बर्तन का स्टैंड निकलते निकलते किसी ने घर मैं आग लगा दी , घर जलने लगा आधे घंटे के बाद पुलिस और फायर ब्रिगेड पहुंची और उनकर देख कर वो दंगाई भागे
मैं ये सब खड़ा ऊपर से देख रहा था
घर जल रहा था मैं छत पर था मेरा मिठू चीला रहा था
मोहल्ले के बच्चो से किसी ने पुछा नहीं वो जानते थे मांस मुस्लमान ने नहीं वो भूखे अधमरे कुत्ते के पीले से छूटा है
आज भी सोचता हु उस बारें मैं तो बढ़ा उदास हो जाता हु
सोचता हु क्या दादरी मैं भी ऐसा ही हुआ होगा
इख़्लाक़ के घर मटन था गायें का मांस नहीं पर उसे मार दिया , उसका भी तो ऐसा कोई मोहल्ला होगा कुछ बच्चे खेलते होंगे ,
कोई मिठू उसने भी पाला होगा ,क्या खंडवा मैं जैसी घटना हुई और वो कुत्ते का पिला अगर मिल जाता तो क्या उसको भी आग लगा देते ?
क्या जब ये पता चल गया की इख़्लाक़ के घर गाये का मांस नहीं था तो क्या जिन्होंने उसे मारा उन्हें भी पकड़कर आग लगा देंगे ?
क्या भूख जानती है ये मटन है और ये गाय का मांस ?
क्या कोई बच्चो से पूछता है मारना चाहिये या नहीं ?
क्या किसी को मिठू की चीख सुनाई नहीं आती ?
क्या छूट पुट सी बातो मैं युही जलती रहेगी ये दुनिया ?
कुछ मंदिर,अखाड़ा आरएसएस शाखा और कुछ नेताओ के घर ,हिन्दू बहुल इलाका ईका-दुक्का मुस्लिम परिवार
मंदिर के दूसरे तरफ वाली गली मैं सुतार मोहल्ला था , सुतार मोहल्ला जहाँ फर्नीचर बनते थे , क्रिकेट के बेट के लिए पटिये की जुगाड़ मैं मोहल्ले के बचे उधर अक्सर जाया करते थे , वही कुछ दुकाने पीछे एक कसाई खाना था ,बकरे उलटे लटके रहते थे
वही कुत्ते के पिल्लै भी मिल जाते थे बच्चे उनके गले मैं रस्सी बांधके साथ लिए घूमते थे ये अधमरे पीले थे कागज़ से लेकर गोबर जो भी पीले उसे खा लेते थे
ये पीले कसाई खाने से पता नहीं क्या उठा उठा लाते थे , एक दिन किसी जानवर की चमड़ी लिए एक पिला घूम रहा था उसे बच्चो ने पकड़ना चाहा तो ट्रक इ नीचे घुस गया और निकला नहीं थोड़ी देर मैं बच्चे भी थक हार कर अपने आपने घर चले गये
दूसरे दिन एक घटना हुई जिससे अभी तक भूल नहीं पाया मैं छटवी या सातवी मैं होंगा उस वक़्त , st pius स्कूल मैं पढता था ,स्कूल घर से दूर था to छोटी बहन और मैं साथ मैं ऑटो से जाते थे , सुबह 7 बजे स्कूल पहुँच जाते थे पर उस दिन ठीक 10 बजे चाचा लेने आ गये
बहन और मैं हम दोनों बढे खुश हुए की स्कूल की छूटी ,चाचा से कारण पुछा तो बोले
शहर मैं कर्फ्यू लगा है ,तो कलेक्ट्रेट का आर्डर है की स्कूल बंद रहें
रस्ते मैं जब पुछा तो उन्होंने बताया की मंदिर के सामने कोई गाय का मांस फेक गया तो दंगा भड़कने से रोकने के लिए कर्फ्यू लगा है
उस वक़्त से सब बातों का मतलब भी नै जनता था मैं पर चाचा हमे
किसी दूसरे सुरक्षित रस्ते से घर आ गये , घर पहुँचते ही हम दोनों ने बैग उतरा और फ्रीज़ से मिर्ची निकालकर सीधा छत पर भागे जहाँ मिठू पाल रखा था उसके साथ दिन भर खेला करते ,छत से पूरा मोहल्ला दीखता था
शनि मंदिर से लेकर स्टील शॉप तक वो स्टील शॉप मोहल्ले के ईका- दुक्का मुस्लिम परिवारो मैं से किसी का था
कमर मिठु भी दिन भर छत पर बैठ कर पूरे मोहल्ले पर नज़र रखता था पर आज मोहल्ला सुनसान था कर्फ्यू के कारण कोई घर से निकल नहीं रहा था
और जिस मंदिर पर ये हुआ वो हमारे मोहल्ले का शनि मंदिर ही था
हम मिठू को मिर्ची खिला रहे थे बहन कह रही थी मेरी दी मिर्ची जल्दी खता है , तेरी मिर्ची धीरे खता है
जभी शनि मंदिर से 40 - 50 लोगो का झुंड दूसरे तरफ भागता दिखा सब के हाथो मैं कुछ न कुछ सामान था
लठ ,रोड़ फावड़े और पता नहीं क्या क्या सोर सुन कर मेरी बहन नीचे दादी के पास भाग गयी और मैं वही नीचे झुंककर बैठ गया
वो लोग स्टील की दुकान को घेर लिए ,दरवाज़ा बंद था किसी ने लात मरी गेट पर तो किसी ने फावड़े से मारना शुरू किया थोड़े ही देर मैं
दरवाज़ा टूट गया और वो सब लोग घर मैं घुस गये
घर मैं कोई मिला नै शायद उन्हें रहने वाले लोग पीछे के रस्ते से बहार निकल चुके थे
पर कुछ ही देर मैं कोई दुकान जहाँ पीछे घर भी था से लोग सामान लेकर बहार निकलने लगे कोई टीवी उठाकार कर बहार निकला तो
कोई बर्तन का स्टैंड निकलते निकलते किसी ने घर मैं आग लगा दी , घर जलने लगा आधे घंटे के बाद पुलिस और फायर ब्रिगेड पहुंची और उनकर देख कर वो दंगाई भागे
मैं ये सब खड़ा ऊपर से देख रहा था
घर जल रहा था मैं छत पर था मेरा मिठू चीला रहा था
मोहल्ले के बच्चो से किसी ने पुछा नहीं वो जानते थे मांस मुस्लमान ने नहीं वो भूखे अधमरे कुत्ते के पीले से छूटा है
आज भी सोचता हु उस बारें मैं तो बढ़ा उदास हो जाता हु
सोचता हु क्या दादरी मैं भी ऐसा ही हुआ होगा
इख़्लाक़ के घर मटन था गायें का मांस नहीं पर उसे मार दिया , उसका भी तो ऐसा कोई मोहल्ला होगा कुछ बच्चे खेलते होंगे ,
कोई मिठू उसने भी पाला होगा ,क्या खंडवा मैं जैसी घटना हुई और वो कुत्ते का पिला अगर मिल जाता तो क्या उसको भी आग लगा देते ?
क्या जब ये पता चल गया की इख़्लाक़ के घर गाये का मांस नहीं था तो क्या जिन्होंने उसे मारा उन्हें भी पकड़कर आग लगा देंगे ?
क्या भूख जानती है ये मटन है और ये गाय का मांस ?
क्या कोई बच्चो से पूछता है मारना चाहिये या नहीं ?
क्या किसी को मिठू की चीख सुनाई नहीं आती ?
क्या छूट पुट सी बातो मैं युही जलती रहेगी ये दुनिया ?