"Garib pardesi"
आप जब MBA school से branding की क्लास करके जब सीधे mumbai फैशन स्ट्रीट जात्ते है तो महंगे brands की नक़ल देखकर यकीं मानिये
MBA की पढाई छोड़ने का मन करता है, इंदौर का "अपोलो" माल हो या भोपाल का "न्यू मार्केट" या दिल्ली का "पालिका बाज़ार" हमारे शहरो की प्रवासी आबादी खुश रहने के तरीके ढूंढ ही लेती है आखिर इनका भी नकली सामान बेचता असली मार्केट जो है
मैं जहाँ से हु वहां brands का प्रचलन नहीं है, "शर्ट" "शर्ट" होता है, "पतलून" "पतलून" सालो साल एक ही दूकान से सम्मान आता है और खाता भी चलता है ,
महीने के पहले हफ्ते मैं सब उधारी चूका दी जाती है,इसी तरह से हज़ारो परिवार हमारे जैसे शहरो मैं जीवन चलाते आये है
ये अगर मैं क्लास मैं कहु तो तो मार्केटिंग के लिए "Insight" बन जाता है
पर अब जब जब अपने घर जाकर पुराने दोस्तों से मिलता हु तो शर्ट पर लगे ब्रांड पर लगे logo को देखकर उनके भी हाव भाव बदलते है
अजीब सा तनाव है माहोल मैं
आप ये नहीं पहनते तो शायद आप complete नहीं है
इस ब्रांड की घड़ी नहीं तो दिन दिन नहीं रात रात नहीं
यही सब सीख रहा हु मैं आज कल
दुखी करके चीज़े बेचना
सोचता हु काश फिर से "शर्ट" "शर्ट" हो जाये और "पतलून" "पतलून"
शहर शहर रहे और कसबे कसबे
न की कसबे फैशन स्ट्रीट पर मिलते सामान की तरह बड़े शहरो की नक़ल
खेर ये सब छोड़िये सुना है आज flipkart पर सेल लगी है अच्छी deals है! #Smalltown
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