Saturday, 19 September 2015

Ganne ke khet

जो लोग रात को जागते है उनको
दुनिया बढे अलग तरीके से देखती है
समय की समझ नहीं  बचती इन लोगो मैं
सुबह हो गयी है उठा जाना चाइये ?
या रात हो गयी सो जाना चाइये ?
ये समय  हो गया  है तो  खाना खा लेना चाइये ?
हर बात मैं घडी दिखाई जाती है
यही नहीं graduate हो गये हो नौकरी क्यों नहीं करते ?
नौकरी हो गयी शादी क्यों नहीं  करते ?
शादी हो गयी अब बच्चे क्यों नहीं  करते ?
बच्चे हो गये घर क्यों नहीं  खरीदते ?

पर अगर

सवालो और जवाबो के इस मेले पानी मैं
सवालो  की धूल को  सतह पर बैठने दे  तो
सवाल "घडी" की सुइयों पर लटकते मिलते है
"समय हो गया है काम हो जाना चाइये"
कैसे पता चलता है समय हो गया है ?
कौन बताता है की ये समय ये होना है ?
सुइये तो गोल सांचे मैं घूम रही है हम क्यों पर सीधे दोड़ रहे है?
 
जवाब मुझे मिलता नहीं

पता नहीं  बर बस "जब वी मेट" फिल्म का अंशुमान याद आ जाता है
जो गन्ने के खेत नहीं  देखना चाहता था
उसका कहना था
ये कल के लोंडे मुझे गन्ने के खेत दिखाना चाहते है !
क्या खास है गन्ने के खेतो मैं ?
क्यों देखूं मैं गन्ने के खेत ?
नहीं देखने मुझे गन्ने के खेत ?

इसका कोई वाजिब जवाब देदे तो
मेरी भी कोई खास इछा नहीं है गन्ने के खेत देखने की:)















No comments:

Post a Comment