जीस लोकल मैं सफ़र करता हु , उनमे दिखने वाले कुछ चेहरे जाने पहचाने हो गए है ,१ सज्जन कुछ गणित मैं उलझे दीखते है मानो दुनिया आज ख़त्म होने को ,कोई १५ min की ही सही पर झपकी ले लेता है , कोई शहर मैं नया हो तो खिड़की से बाहर झाकने की ललक से पहेचाना जाता , और जब ट्रैन किस्सी झुगी के पास से गुज़रती है तो नाक बोहे सिकुड़ने के साथ उन बनाये ब्रहमो को खोकला पाता है
कुछ नवविवाहित भी दीखते है , चहेरे पर ख़ुशी और आँखों मैं कल के सपने , कुछ बच्चे भी होते है हाथो मैं किताबे लिए असल दोड़ मैं दोड़ने के लिए, कुछ दोड़ो मैं शामिल होना बाकि है , और हाँ उन चेहरे को घूरते घूरते अचानक पता चलता है की कुछ चेहरे आपको घुर रहे है और स्टेशन आ जाता है , हाँ कल ही पहली बारिश भी हुई मुंबई की पानी तो वही था पर concrete के शहर मैं मीट्टी की खुशबू नहीं आई "
कुछ नवविवाहित भी दीखते है , चहेरे पर ख़ुशी और आँखों मैं कल के सपने , कुछ बच्चे भी होते है हाथो मैं किताबे लिए असल दोड़ मैं दोड़ने के लिए, कुछ दोड़ो मैं शामिल होना बाकि है , और हाँ उन चेहरे को घूरते घूरते अचानक पता चलता है की कुछ चेहरे आपको घुर रहे है और स्टेशन आ जाता है , हाँ कल ही पहली बारिश भी हुई मुंबई की पानी तो वही था पर concrete के शहर मैं मीट्टी की खुशबू नहीं आई "
Impeccable dear!!!
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